Rajani katare

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चाय की टापरी




लेखनी वार्षिक प्रतियोगिता
दिनांक- 9/3/22
विषय- चाय की टपरी
शीर्षक- चाय का ठेला

बीच शहर से दूर एरोड्रम के पास एक आई.आफिस जहाँ ढेरों कर्मचारी काम करते हैं, रोहन और मोहित
भी उसी आफिस में काम करते हैं....
रोहन- चल यार चाय पीकर आते हैं, बैठे बैठे कमर
अकड़ गयी....
मोहित- हाँ हाँ चल चलते हैं....

आफिस के पास ही रामू काका चाय का ठेला लगाने लगे थे, जब से ये आफिस खुला था हाँ ये बात जरुर है उन्हें दो तीन कि.मी.पैदल चलकर आना पड़ता था ठेले को लेकर.....
पर उन्होंने यही सोचा यहाँ पर अच्छे ग्राहक मिल
जाएंगे!! आस पास कोई और दुकान ही नहीं है,
सो उसका सोचना भी सही था... दिनभर में तीन
चार बार लोग चाय पीने आते थे, सो उसकी अच्छी
कमाई होने लगी......

रोहन और मोहित आपस में बात करते चाय के ठेले तक पहुँच गये.....
अरे रामू काका बढ़िया कड़क चाय तो पिला दो -
कह कर दोनों बातों में लग गये.....
यार ये प्राईवेट कंपनी वाले जी तोड़ मेहनत करवाते
हैं, देर रात तक काम लेते हैं घर पहुँचते हाथ पाँव 
जबाव दे जाते हैं.....
बेटा ये लो चाय... दोनों धीरे धीरे चाय की चुस्की लेने लगते हैं.....
क्या जिंदगी हो गयी है यार!! कोल्हू  के बैल की
तरह जुते रहते हैं.....
चल यार नहीं तो बाॅस अभी खिंचाई कर देगा.....
रामू काका ये पैसे.....

ठेले पर चाय पीने आते तो अरे काका!! 
साथ में कुछ खाने को भी मिल जाता तो क्या
बात थी......
अब दूसरे दिन तो ठेले की रंगत ही बदल गयी....
रामू ने ठेले के ऊपर से अच्छी कनात लगा ली.....
थोड़ा आगे तक, लोग अच्छे से बैठ कर चाय-
पकोड़ों का लुत्फ़ उठा पाएं.....
बैठने के लिए चार प्लास्टिक की कुर्सियां खरीद लाया.... घर में एक दो बेंच थी बैठने सो वो भी लाकर रख लीं.....
साईड से भी उसने कनात लगाई!!
जिससे धूल धक्कड़ न आ पाए, उसने साफ
सफाईका, और स्वास्थ्य का भी बराबर ध्यान रखा......

अब तो उसकी अच्छी खासी आमदनी होने लगी,
आफिस के कर्मचारी भी बहुत खुश हुए....
चाय के साथ पकोड़े जो मिलने लगे थे.....
अरे वा काका अब तो ठेले पर ही चाय की टपरी
बना ली आपने!! बहुत बढ़िया.....
काका आलूबड़े भी बनाने लगो... क्या कहते हो...?
कल खिलवाओगे क्या...?
हाँ हाँ बिटुआ जरुर खिलाएंगे.....

देखते देखते ही रामू का परिवार खुशहाल जीवन
जीने लगा.....
अब रामू की घरवाली भी टपरी पर आने लगी...
रामू तरह तरह की चाय बनाता.....
जिसको जैसी पसंद- कोई कहता बढ़िया कड़क
चाय, कोई कहता मलाई मार के, कोई नीबू चाय!!
रामू की घरवाली... बढ़िया गर्मागर्म पकोड़े और
आलूबड़े बनाती.....
रामू की तो जैसे लाटरी ही निकल गयी.....

समय कब किसी के लिए रुका है, रामू का भी
बुढ़ापा झलकने लगा.....
रामू के दो बेटे जो कहीं पर नोकरी करने लगे थे,
पढ़ लिख जो गये थे, कभी कभार उन्हें टपरी पर आते देखा बढ़िया कपड़ों में, मोटरसाइकिल पर...
लेकिन रामू काका में कोई बदलाव नहीं आया....
वही अपने धोती कुर्ता और एक गमछा!! 
जिससे वो अपने हाथ पौंछते थे.....

अब तो आजू बाजू ओर भी टपरे बन गये, पर
रामू काका के टपरे की बात ही अलग है....
पता नहीं क्यों..? ज्यादातर,भी चाय पीने वहीं
खिंचे चले आते हैं लोग.....
रामू के चेहरे पर अलग ही संतोष नज़र आता है,
खुशहाल जीवन जी रहा है, उस एक ठेला जो-
चाय की टपरी में तब्दील हो गया!! उसने उसकी
जिंदगी को बदल दिया.....
रोहन- काका दो बढ़िया सी कड़क चाय और
साथ में पकोड़े भी....।

   रचनाकार- रजनी कटारे
         जबलपुर म.प्र.

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3 Comments

Abhinav ji

17-Mar-2022 11:52 PM

बहुत खूब

Reply

Seema Priyadarshini sahay

13-Mar-2022 06:05 PM

बहुत खूबसूरत

Reply

Gunjan Kamal

12-Mar-2022 06:40 PM

बहुत बढ़िया लिखा आदरणीया👏👌🙏🏻

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